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जन - वीणा (free)
Jan Veena - free
Author: Sunkara Ramesh
Publisher: Kavya Sadan
Pages: 80Language: Hindi
श्री सुंकरा रमेश धरती से जुड़े कवि हैं। उनकी कविताओं में माटी की गंध है, उनका धरती से जुड़ाव ही उनसे "गाँव चलेंगे" लिखवाता है, उनसे "किसान का गीत" लिखवाता है। धरती से जुड़ाव के कारण ही वह "धुँधुरू की आहट" सुनते हैं, मेढकों की टर्र-टर्र सुनते हैं और "हरा सपना" देखते हैं। वह धरती से जुड़ कर ही कभी "गोदावरी" का अभिनन्दन करते हैं तो कभी तेलंगाना का "वंदन शुभ-वंदन" करते हैं।
"जन-वीणा" की कविताओं में यदि धरती से जुड़ाव छलकता है तो उनमें जनपक्षधरता भी जगह-जगह पर दिखायी देती है। उनमें "जीवन के प्रति ललक" है तो उनमें "स्नेह की नदी" भी। श्री सुंकरा रमेश यदि जीवन में "सेल्स मैन" के संघर्ष को महसूसते हैं तो "पेपर बॉय" की कठिन दिनचर्या भी। वह कविता के सहारे कभी "फलवाली" को याद करते हैं तो कभी वह "सब्जी वाली" को भी ! "जन-वीणा" के कवि की यह जनपक्षधरता ही है जो कि साधारण से साधारण लोगों के जीवन में भी एक कविता खोज लेती है।
"जन-वीणा" की तमाम ऐसी रचनाएँ हैं जो श्री सुंकरा रमेश को एक सामर्थ्यवान कवि के रूप में खड़ा करती हैं। ये कविताएँ पाठक के हृदय को छूती हैं, उसकी बौद्धिकता को उदबुद्ध करती हैं और उसके हृदय में बस जाती हैं।
